किसान महापंचायत के जरिए एकता और गंगा जमुनी तहज़ीब का संदेश

अभी हाल ही में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुई किसान महापंचायत में उमड़े जनसैलाब ने एक नया अध्याय रच दिया है।हिंदू मुस्लिम एकता को इस महापंचायत में नये आयाम मिलें हैं। और एकता को मजबूत किया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में 2013 के सांप्रदायिक दंगों को आठ साल हो चुके हैं।

इन दंगों में साठ से ज्यादा लोगों की जान गई थी, जबकि हज़ारों लोग पलायन करके दूसरे गांवों में जाकर बस गए थे। आठ साल पहले हुए इन दंगों में न्यायिक व्यवस्था सवालों के घेरे में है। दंगों के दौरान हत्या, बलात्कार, डकैती और आगजनी से संबंधित 97 मामलों में 1,117 लोग सबूतों के अभाव में बरी हो गए।

बीते आठ वर्षों में इन दंगों के मामले में सिर्फ सात लोग दोषी पाए गए हैं, और वे भी वे उस मामले में दोषी पाए गए हैं, जिसकी वजह से मुजफ्फरनगर के ग्रामीण क्षेत्रो में दंगे भड़के थे।दंगों से जुड़े मामलों की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था।

एसआईटी के अधिकारियों के मुताबिक, पुलिस ने 1,480 लोगों के खिलाफ 510 मामले दर्ज किए और 175 मामलों में आरोप पत्र दायर किया। जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक़ एसआईटी के एक अधिकारी ने बताया कि 97 मामलों में अदालत ने फैसला किया और 1,117 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी किया। उन्होंने कहा कि अभियोजन ने अभी इन मामलों में अपील दायर नहीं की है।

कवाल गांव में दो युवकों की हत्या के मामले में सात लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।एसआईटी 20 मामलों में आरोप पत्र दायर कर नहीं सकी, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उसे मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली। इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों से जुड़े 77 मामलों को वापस लेने का फैसला किया है, लेकिन अदालत ने यूपी सरकार के गन्ना मंत्री सुरेश राणा,

सरधना से भाजपा विधायक संगीत सोम समेत 12 भाजपा विधायकों के खिलाफ सिर्फ एक मामला वापस लेने की अनुमति दी है। एसआईटी के अधिकारियों के अनुसार, 264 आरोपी अभी अदालती कार्यवाही का सामना कर रहे हैं। दंगों में 60 से अधिक लोग मारे गए थे और 40 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए थे।मुजफ्फरनगर दंगे के पीछे छेड़खानी की वजह बताई गई थी। आरोप था कि कवाल गांव में कथित तौर पर जाट समुदाय की लड़की के साथ शाहनवाज़ ने छेड़खानी कर दी थी।

उसके बाद लड़की के दो ममेरे भाइयों गौरव और सचिन ने शाहनवाज़ की बीच चौक पर चाकू मारकर हत्या कर दी थी, दिन-दहाड़े इस हत्याकांड के बाद शाहनवाज़ के गांव के लोगों ने मौक़े पर ही प्रतिशोध लेने के लिए दोनों युवकों की जान ले ली। गौरव और सचिन की हत्या के बाद इस मामले में राजनीति शुरू हो गई, भाजपा समेत हिंदुवादी संगठनों के लोगों ने पंचायतें करना शुरू कर दिया, इसके बाद मुस्लिम समाज की ओर से भी मुजफ्फरनगर शहर में पंचायत हुई। सात सितंबर 2013 को मुजफ्फरनगर के ग्राम नंगला मंदौड़ में महापंचायत हुई। इस महापंचायत में भाजपा के स्थानीय नेता और हिंदुवादी संगठनों के लोग भी शामिल हुए। इसी पंचायत में भाजपा नेताओं पर आरोप लगा कि उन्होंने जाट समुदाय को बदला लेने के लिए उकसाया था।

जबकि भाजपाई इससे इंकार करते हैं। सात सितंबर को महापंचायत से लौट रहे लोगों का विवादित नारों के कारण जौली नहर के पास हिंसक संघर्ष हुआ। जिसके बाद देखते-देखते इन दंगों ने मुजफ्फरनगर के ग्रामीण क्षेत्र को झुलसा दिया। कई गांवों से पलायन हुआ। मुजफ्फरनगर के कुटबा, कुटबी, फुगाना, लाख, बाहवड़ी गांव में रह रहे अल्पसंख्यकों को इन दंगों में निशाना बनाया गया। जिसके बाद, शाहपुर, लोई, गढ़ी दौलत, कैराना जैसे अल्पसंख्यक बहुल गांवों में दंगा पीड़ितों ने शरण ली।2013 के बाद भारतीय किसान यूनियन का बंटवारा हो गया था और वो एक बेहद कमज़ोर संगठन बन गया था।

दिवंगत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत दुनिया से जा चुके थे और यह बिल्कुल ऐसा था जैसे टिकैत बंधुओं ने अपने पिता की मिली किसानों की एकजुटता की विरासत को खो दिया हो ! यहां तक कि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के सबसे करीबी साथी ग़ुलाम मोहम्मद जौला भी अलग हो गए, हालांकि ग़ुलाम मोहम्मद जौला जरूर कहते रहे कि चौधरी टिकैत मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान जिंदा होते तो यह दंगा ही ना होता। ग़ुलाम मोहम्मद वो ही शख्सियत है वो दिंवगत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ अल्लाहू अकबर और हर -हर महादेव का नारा साथ मिलकर लगाते थे

किसान यूनियन की यह एक परंपरा थी और 2013 दंगे के बाद यह परंपरा टूट गई थी। 5 सितंबर 2021 की महापंचायत में राकेश टिकैत ने यह नारा लगाकर न केवल इस परंपरा को फिर से जिंदा किया है बल्कि किसान एकता के नाम पर 36 बिरादरियों को साथ लाकर अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने का काम किया है। राकेश टिकैत अपने पिता के चार बेटों में से एक है,वो अपने पिता के साथ रहते थे। दिल्ली पुलिस की अपनी नौकरी भी उन्होंने अपने पिता के लिए ही छोड़ी थी। उनके बड़े भाई नरेश टिकैत प्रारम्भ से ही खेती संभालते है।

नरेश टिकैत बालियान खाप के चौधरी भी है। राकेश टिकैत ने चूंकि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ काफी वक्त बिताया है इसलिए उनके पिता उनके गुरु भी रहे हैं। टिकैत परिवार का दिवंगत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ बेहद भावुक रिश्ता है। आज भी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के कमरे में देशी घी में ज्योत जलाई जाती है और उनका बिस्तर और हुक्का लगाया जाता है। उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत खुद ऐसा करते हैं। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों की जिस एकता को विरासत के तौर पर टिकैत बन्धुओ को सौंपा था उसे 2013 के दंगों ने तोड़ दिया था मगर 2021 की किसान महापंचायत में जुनियर टिकैत ने उसे फिर से जोड़ दिया है।

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