पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी ने आ’रोप लगाया है कि उनके पति राजनीतिक प्र’तिशोध के शिका’र बने और उनकी जा’न को ख’तरा है.
हालांकि आधिकारिक सूत्रों ने श्वेता भट्ट के इन आरो’पों को गलत बताया है.
हाल ही में संजीव भट्ट को 1990 के हिरा’सत में मौ’त के एक मामले में आजी’वन कारा’वास की स’जा सुनाई गई है.
रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए पत्नी श्वेता भट्ट ने कहा कि संजीव भट्ट को दो’षी करार दिए जाने के बाद उनके परिवार के लिए यह मुश्किल समय है. इस घट’ना ने उन्हें तो’ड़ दिया है.
वहीं, आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि वह झू’ठ फैला रही हैं और मामले में निष्पक्ष मुकदमे के बारे में ग’लत धारणा बना रही हैं.
मालूम हो कि यह मामला प्रभुदास वैशनानी की हिरासत में हुई मौ’त से जुड़ा है. भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान बिहार में उन्हें गिर’फ्तार किए जाने के बाद 30 अक्टूबर 1990 को बुलाए गए बंद के दौरान जामनगर के जमजोधपुर कस्बे में सांप्र’दायिक दं’गे भड़’क उठे थे.
इस संबंध में जामनगर पुलिस ने 133 लोगों को पकड़ा था. वैशनानी भी उनमें शामिल थे. वैशनानी विश्व हिं’दू परिषद के कार्यकर्ता थे. संजीव भट्ट उस समय जामनगर के असिस्टेंट एसपी थे.
श्वेता भट्ट ने कहा कि उनके पति ने न तो किसी को गिर’फ्तार किया और न ही किसी को हिरास’त में लिया क्योंकि उनके पास इतना अधिकार नहीं था. दूसरी बात, प्रभुदास की मौ’त हिरास’त में लिए जाने के 18 दिनों बाद हुई थी. उसने मजिस्ट्रेट या किसी अन्य के सामने प्रता’ड़ना की शि’कायत भी नहीं की थी.
उन्होंने दावा किया, ‘प्रभुदास के परिवार ने नहीं बल्कि विश्व हिं’दू परिषद के सदस्य अमृतलाल मदजावजी वैशनानी ने हिरासत में प्रता’ड़ना की शिका’यत की थी.’
हालांकि, सूत्रों ने बताया कि मामला गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के जोर देने पर दर्ज किया गया था.
आधिकारिक सूत्रों में से एक ने बताया, ‘संजीव भट्ट और पुलिस अधिकारियों की उनकी टीम ने लोगों को उनके घरों से निकाला था और उन्हें गिर’फ्तार करने से पहले बेर’हमी से उनकी पिटा’ई कर थी.’
श्वेता भट्ट ने कहा, ‘बॉम्बे पुलिस एक्ट की धारा 161 के अनुसार एक सरकारी अधिकारी पर किसी अप’राध के 1-2 साल के भीतर मुकदमा चलाया जा सकता है, न कि 23 साल के बाद.’